गीता बनी मास्टर गीता”
जो खुद की मदद करने की ठान लेता है, उसकी मदद के लिए भगवान भी तत्पर रहते हैं, ऐसी ही एक कहानी है गीता की,जो कि बचपन से ही संघर्षों का सामना करते हुए आगे बढ़ी, हिम्मत नहीं हारी और रास्ते बनाते चली गयीं।
बचपन की पढ़ाई ननिहाल में —
गीता का जन्म झारखण्ड राज्य के बोकारो जिले के एक छोटे से गांव गट्टीगढ़ा में हुआ था। घर से सबसे नजदीकी प्राथमिक विद्यालय 5 किलो मीटर दूर था। उपयुक्त सुविधा ना होने के कारण गीता के माता-पिता ने उसे नाना के घर बरियातू ,रांची पढ़ने को भेजा। मामाजी शिक्षक थे, जिनकी देखरेख में गीता ने दसवीं की परीक्षा वर्ष 2010 में प्रथम स्थान प्राप्त किया। दसवीं की परीक्षा के बाद से ही उसने बच्चों को पढ़ाना भी शुरू किया था। एक तरफ वह बच्चों को पढ़ा कर कुछ धन की व्यवस्था करती और साथ ही साथ अपनी आगे की पढ़ाई करती। देखते ही देखते उसने इंटर की पढ़ाई भी पूरी कर ली।
टयुशन के पैसे से की अपनी पढ़ाई–
इंटर की पढ़ाई के बाद गीता अपने गाँव वापिस लौट आयी। उसने अपने गाँव में घर पर ही बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया और अपनी आगे की पढ़ाई करने के लिए गणित स्नातक में नाम लिखाया। बच्चों को पढ़ाने से जो पैसे आते उस पैसे से ही उसने स्वयं की पढ़ाई की। 2015 में जब वह पार्ट 2 में थी तब उसकी शादी रामगढ़ जिला के अंतर्गत गोला प्रखंड के नवाडीह पंचायत के सोनडीमरा गांव में हुई। नया गांव, नया घर परिवार, सब कुछ अलग लगने लगा। पढ़ाई भी बंद होने लगी थी। गीता को सब स्वीकार था लेकिन पढ़ाई से समझौता नहीं। गीता ने अपनी मन की बात अपने ससुराल वालों को बतायी। कहा जाता है ना जब मन में ठान लो तो वह मिलकर ही रहता है। इसी तरह उसकी इच्छा के अनुसार ससुराल वालों ने भी उसे बहुत सपोर्ट किया और गीता ने 2017 में बीएससी पूरा कर लिया।
विश्वास और प्रयास पर ही दुनिया कायम है —
गीता के घर की हालत अच्छी नहीं थी। परिवार में कमाने वाले अकेले उसके पति ही थे। गीता को अपनी आगे की पढ़ाई (बीएड) आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण स्थगित करनी पड़ी। गीता बताती है कि गांव का माहौल देखकर उसे बहुत बुरा लगता था। एक दिन उसके पास पांचवी कक्षा की एक बच्ची आई और उस बच्ची को 1,2,3 …….. (अंग्रेजी में) बोलने तक नहीं आता था । उसे बच्चों की पढ़ाई को लेकर चिंता होने लगी कि आखिर इन बच्चों का भविष्य क्या होगा ? अभिभावक बच्चों की पढ़ाई को लेकर बिल्कुल भी जागरूक नहीं हैं,बस बच्चे का नाम किसी तरह गांव के सरकारी स्कूल में लिखवा दिया जाता है। बच्चा स्कूल जाता है ,मध्याह्न भोजन खाता है और स्कूल से आ जाता है।
एक दिन गीता की मुलाकात गांव के ही सुमित्रा दीदी से हुई, जो एक समाज सेवी महिला हैं। गीता के अनुसार जब सुमित्रा दीदी ने उसकी इच्छा को जाना तो उन्होंने उसे ज्ञानशाला वाले सर से मिलवाया। सर ने ISDG फाउंडेशन सँस्था के तहत सामुदायिक शिक्षा के लिए चल रहे कार्यक्रम ज्ञानशाला के बारे में बताया, तब गीता को ऐसा लगा कि उसके जैसी और भी कई बहन,बेटियां और बहुएँ इस कार्यकम से बहुत लाभ ले सकती हैं।
ज्ञानशाला कार्यक्रम के अंतर्गत झारखण्ड एवं छत्तीसगढ़ राज्य के ग्रामीण एवं जनजातीय क्षेत्रों में बालिकाओं की गुणवत्ता युक्त प्राथमिक शिक्षा के लिए विशेष प्रशिक्षण एवं सहयोग दिया जाता है। इसमें यह सिखाया जाता है कि बच्चों की सारी पढ़ाई लिखाई, सरलता से और गुणवत्ता से कैसी कराई जाए। कार्य गतिविधि कैसे कराये ? गीता बताती है – ज्ञानशाला के द्वारा शुरू की गई ऑनलाइन ट्रेनिंग जो कि हर शनिवार रविवार को होती है, बहुत मददगार साबित हुई, सभी सर और मैडम अलग -अलग विषय की ट्रेनिंग देते हैं। ट्रैंनिंग के माध्यम से बहुत कुछ सीखा भी और अपने बच्चों पर आजमाया भी जो बहुत ही कारगर साबित हुआ। तब से मैंने अपने को एक बेहतर शिक्षक के रूप में ढालने का प्रयास किया। बच्चों को पढ़ाने का मौका तब मिला जब पहला लॉक डाउन हुआ। सबसे पहले अपने घर के ही दो बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। उसके बाद धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ती गई। ज्यादातर बच्चियां मुझसे पढ़ती हैं, कुल मिला कर 40 बच्चे बच्चियां तीन पाली में मुझसे पढ़ते हैं। गाँव की बात है, मैं किसी से फीस नहीं मांगती, लेकिन सभी परिवार कुछ सहयोग राशि दे देते हैं।
मैं खुद भी फिर से पढ़ना चाहती हूँ। मेरी इच्छा B.Ed करने की है ताकि सरकारी शिक्षक बन सकू, जिससे अपने परिवार की कुछ आर्थिक मदद कर सकूं और अच्छा शिक्षक बन कर समाज के लिए कुछ कर पाऊं।