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ज्ञानशाला – Learning How to Learn.

“By education I mean an all-round drawing out of the best in the child and man; body, mind and spirit.” ~ Mahatma Gandhi.

“ज्ञानशाला” – छात्राओं के लिए स्थानीय गुणवत्ता युक्त शिक्षा 

विशेषज्ञ कहते हैं कि “सीखने की क्षमता” ही शिक्षा का आधार है. किसी भी व्यक्ति के सीखने की क्षमता के मौलिक बिंदु हैं – पठन (वर्णमाला, शब्द, गद्य, कथा), अंक परिचय (अंक पहचान, दोहरा अंक, जोड़, घटाव, गुणा, भाग), संज्ञानात्मक कौशल (श्रृंखला, पद्धति पहचान, पहेली) एवं सुनने की समझ. आज की तारीख में समाज और सरकार ने लगभग लगभग सभी बच्चों को स्कूल से जोड़ दिया है. अब वह समय आ चूका है जब सभी मिल कर गुणवत्ता युक्त शिक्षा के लिए प्रयास करें.

सरकारी और प्राइवेट स्कूल, दोनों के ही छात्र बेहतर शिक्षण के मामले में कठिनाई का अनुभव करते हैं. इसके कई सारे अन्तर्निहित सामाजिक – आर्थिक एवं शैक्षणिक कारण हैं, जिनमे प्रमुख हैं :

  1. कई छात्र पहली पीढ़ी के छात्र हैं.
  2. घर में समुचित वातावरण का अभाव.
  3. स्कूल के बाद मार्गदर्शन का पूरा अभाव.
  4. शिक्षा के लाभ से अपरिचित परिवेश.
  5. शिक्षा को उनकी सामाजिक आर्थिक समस्याओं का उपाय न स्वीकार करना.
  6. स्थानीय समाज में गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने में सक्षम युवा की कमी.

ज्ञानशाला, इन्ही समस्याओं को स्थानीय प्रयास से सुलझाने का एक प्रयोग है. इस लेख के माध्यम से हम इस प्रयोग को कुछ हद तक समझने का प्रयास करेंगे.

समाज : हम जिस समाज में रहते हैं, उसमें कई तरह के परिवार हैं. कुछ में शिक्षा को ले कर जागरूकता है, जबकि कुछ में शिक्षा को ले कर शिथिलता है. छात्रों को मिलने वाले वातावरण और उनके शैक्षणिक विकास में अंतर, भविष्य में उनकी संभावनाओं में भी अंतर पैदा करता है.

ऐसे में विद्यालय के परे यदि अपने समाज के अन्दर कोई योग्य युवा / युवती अपने मोहल्ले / गाँव की बच्चियों का एक सामान्य मूल्य लेकर मार्गदर्शन करें, तो यह एक बड़े जमीनी परिवर्तन की कहानी बन सकता है.

ज्ञानशाला के अभियान में हमें ऐसे ही समर्पित स्थानीय युवा / युवती की आवश्यकता है, जिनमे लम्बे समय तक समाज को शिक्षा देने की इच्छा हो. जिनमे कुछ सीखने की इच्छा हो, सिखाने की इच्छा हो. जिनमे एक गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने वाले भविष्य के शिक्षक बनने का सामर्थ्य एवं अभिलाषा हो.

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा : गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सतत् विकास की बुनियाद है, इसीलिए सतत् विकास लक्ष्‍य की बुनियाद भी है। नीतिगत हस्‍तक्षेप के तौर पर शिक्षा, ताकत को कई गुणा बढ़ाने वाली शक्ति है, जो आत्‍मनिर्भरता देती है, कौशल में वृद्धि से आर्थिक वृद्धि बढ़ाती है तथा बेहतर आजीविका के लिए अवसर खोलकर लोगों के जीवन स्‍तर में सुधार करती है।

हर बच्चा विशिष्ट है. बच्चे की शिक्षा को, बच्चों की विभिन्नता का ध्यान रखना चाहिए. प्रत्येक बच्चा, अलग अलग तरीके से सीखना पसंद करता है. शिक्षा गुणवत्तापूर्ण तभी हो सकती है, जब वह प्रत्येक बच्चे की सीखने की विविधता को स्थान दे और हर बच्चे को सीखने का उचित अवसर. शिक्षा के साथ अन्य आवश्यक कौशल, व्यक्तित्व के बिन्दुओं का भी उचित विकास होना चाहिए.

शिक्षा के तीन प्रमुख घटक छात्र, शिक्षक व अभिभावक होते हैं। तीनों मिल कर ही शिक्षा व्यवस्था को पूर्ण करते हैं। तीनों घटकों के ठीक तरीके से कार्य करने पर ही शिक्षा व्यवस्था बेहतर होती है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में बच्चों को चुनाव का अवसर दिया जाता है। ऐसे माहौल में एक शिक्षक सुगमकर्ता के रूप में काम करता है। कक्षा के केंद्र मे बच्चा होता है। बच्चे का सीखना सबसे ज्यादा मायने रखता है। ऐसे में एक बच्चे को पूरा सम्मान मिलता है कि वह आत्मविश्वास के साथ क्लास में अपनी बात बग़ैर किसी झिझक व संकोच के कहे।

गुणवत्ता युक्त शिक्षा के प्रमुख बिंदु :

1) मौलिक पठन, लेखन, अंकों का सही ज्ञान.

2) प्रश्न पूछने का माहौल.

3) बच्चे को समझने वाले गुरु जन.

4) प्रत्येक बच्ची को उसकी विशिष्टता के अनुसार शिक्षण.

5) अभिभावकों का सहयोग.

6) रोचक पठन सामग्री एवं पाठन पद्धति.

7) सतत सीखने की प्रवृत्ति का विकास.

8) मूल्यांकन एवं आवश्यक सुधार.

स्थानीय गुरु की भूमिका : ज्ञानशाला अभियान के अंतर्गत इच्छुक, योग्य एवं समर्पित स्थानीय युवा / युवती, स्थानीय गुरु की भूमिका निभायेंगे. वह छात्र, उनकी शिक्षा, उनके सर्वांगीण विकास और उनके अभिभावक के बीच में कड़ी का रोले निभाएंगे. उनका दायित्व निम्नलिखित होगा :

1) अपने आस पास के कक्षा 1 से 5 के छात्राओं और उनके अभिभावकों से संपर्क.

2) समाज की स्वीकृति से पढ़ाने के लिए एक निश्चित स्थल का चयन. अभिभावकों से स्वीकृति पत्र पर हस्ताक्षर.

3) एक स्वीकृत (अभिभावक, ज्ञानशाला) शिक्षण शुल्क तय करना.

4) अपने आस पास की कक्षा 1 से 5 के 15-20 छात्राओं को इकट्ठा करना, उन्हें सप्ताह में 5 दिन, 1.5 घंटा पढ़ाना.

5) शिक्षा के विभिन्न नवाचार का प्रयोग.

6) छात्राओं के लिए 50 पुस्तकों के एक पुस्तकालय की स्थापना.

नयी शिक्षा नीति : भारत सरकार की नयी शिक्षा नीति, भविष्य की शिक्षा का आइना है. यह नीति लीक से हट कर, प्रत्येक छात्र को ध्यान में रखते हुए उस छात्र की योग्यता और संभावना के शीर्ष तक जाने की कल्पना करती है. छोटे बच्चों के सन्दर्भ में इस नीति के प्रमुख बिंदु हैं :

  1. विविधता एवं स्थानीय सन्दर्भ का सम्मान.
  2. वैचारिक समझ.
  3. समान एवं समावेशी शिक्षा.
  4. छात्रों की विशिष्टता की पहचान.
  5. सामाजिक सहयोग.
  6. गहन सोच एवं रचनात्मकता.
  7. तकनीक का प्रयोग.
  8. सतत समीक्षा.

सर्वेक्षण : जितने भी छात्राओं को हम शिक्षण उपलब्ध करायेंगे, हम उनका राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर सर्वेक्षण करेंगे. हम उनकी योग्यता एवं जानकारी के प्राथमिक स्तर का मूल्यांकन कर उसका रिकॉर्ड रखेंगे. इसके लिए हम “असर” मूल्यांकन एवं सर्वेक्षण का उपयोग कर सकते हैं.

इसके उपरांत सभी छात्राओं को भाषा, अंक, पठन और समझने की योग्यता के इर्द गिर्द 3 माह का विशेष शिक्षण (मानक – पूरक शिक्षण) उपलब्ध करायेंगे. जिसमें हमारा प्रयास होगा कि छात्राएं अपनी कक्षा के अनुरूप भाषा, अंक, पठन और समझने की योग्यता विकसित कर लें. इस कार्यक्रम के उपरांत हम फिर उनका राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मानकों के आधार पर सर्वेक्षण करेंगे.

मानक – पूरक शिक्षण : इस शिक्षण के दौरान प्रत्येक छात्रा को उसकी व्यक्तिगत योग्यता के अनुसार केवल उसकी भाषा, अंक, पठन और समझने की योग्यता विकसित करने पर काम किया जाएगा. इसके लिए ऑडियो विडियो, पेपर आधारित, प्रश्नावली एवं चित्रावली आधारित, तकनीक आधारित माध्यमों से छात्राओं के समयबद्ध विकास पर काम किया जाएगा.

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा पद्धति : हम अपने छात्राओं को उच्चतम शिक्षण देने हेतु अंतर्राष्ट्रीय शिक्षण पद्धति का प्रयोग करेंगे. इसके लिए हम देश के अग्रणी संस्थाओं से मार्गदर्शन एवं सहयोग लेंगे. इस पद्धति में भविष्य के लिए पूरी तरह से तैयार छात्राएं तैयार किये जाते हैं. इसमें प्राथमिकता से मूलतः 6 बातों का ध्यान रखना होता है :

  1. बच्चों को स्वयं सीखने के लिए प्रेरित करें.
  2. बच्चों को स्वयं अधिक सीखने की चुनौती दें.
  3. कुछ बच्चे आगे निकल जायेंगे, कुछ बच्चे पीछे रह जायेंगे. इसका उपयोग शैक्षणिक हस्तक्षेप (सहयोगी शिक्षण) Peer Learning में करें. समूह शिक्षण, विषय मित्र कर सबको आगे बढाये.
  4. उपरोक्त प्रक्रिया से सीखने की गति बढ़ जाती है, इसलिए सिलेबस एक तिहाई समय में पूरा करने की योजना बनाएं.
  5. बच्चों के जिज्ञासु रवैये का सम्मान करें. उन्हें प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करें तथा उनका उत्तर खोजने के लिए भी प्रेरित करें.
  6. अभिभावक के मोबाइल के उपयोग से टेक्नोलॉजी द्वारा सीखने की गति बढायें.

इस विषय सम्बन्धी विशेष जानकारी एवं प्रशिक्षण दिया जाएगा.

समाज के लिए स्थायी शिक्षा संसाधन : हमारी ज्ञानशाला की सोच में, स्थानीय गुरु अपने समाज के लिए दीर्घ कालीन शिक्षा संसाधन का रोले निभायेंगे और अपनी क्षमता का नियमित विस्तार करते हुए छात्राओं की श्रृंखला को दिशा देंगे. साथ ही अन्य सामाजिक चिंतन एवं विकास के विषयों में भी अपना विशेष योगदान देंगे.