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होनहार बिरवान के होत चीकने पात : चम्पारण गाँव के गोकुल

यह मुहावरा रायपुर ज़िले चम्पारण गाँव के गोकुल की कहानी पर सटीक बैठता है। जहाँ गांव में बच्चे खेतो में क्रिकेट,गुल्ली डंडा खेलते, वहाँ एक बच्चा बचपन से ही खेल – खेल में सबसे अगल पहचान बना रहा था और अपने लिए एक भविष्य, एक अलग कहानी लिख रहा था।

बच्चे की प्रथम शिक्षक माँ होती है।

बच्चों की प्राथमिक शिक्षा घर से ही शुरू होती है,और माँ ही पहली शिक्षक होती है। गोकुल दास वैष्णव बचपन से ही बहुत समझदार,मेहनती छात्र रहा। गोकुल के व्यकित्व पर उनकी माँ का बहुत गहरा प्रभाव रहा। गोकुल की माँ एक आंगनवाड़ी कार्यकर्त्ता हैं। माँ ने हर एक कदम पर गोकुल को बहुत सहयोग किया।गोकुल अपनी पढ़ाई के साथ ही साथ माँ की देखरेख में अपने ग्राम में पूरक पोषण आहार बांटने में मदद करता, प्रति दिन दो घंटे बच्चो को पढ़ाता और दीवारों पर नारा लेखन जैसे कार्यो में भी माँ की सहायता करता।

युवा ही भविष्य।

2020 में जब गोकुल बी.ए. सेकेण्ड इयर में थे तभी कोविद 19 महामारी की वजह से पूरे देश में सब कुछ बन्द हो गया। यही समय था,जब अपने गांव चम्पारण में लोगो के बीच जाकर उनमे जागरूकता लाने गोकुल अपने एन.एन.एस की डब्लू ब्रिगेड टीम के साथ निकल पड़ा। जन- जागरूकता लाने के लिए बच्चो को पढाना ,सभी लोगो को सवच्छता के बारे में जागरूक करना,हाथ धोना,मास्क लगाना,बाहर निकलने पर दूरी बनाये रखना और अपनी बारी आने पर टीका लगवाने के लिए घर घर जा कर प्रचार किया।

कम उम्र में जिम्मेदारी का एहसास।

कोरोना वालिटियर के रूप में चयनित होकर गोकुल अपने साथियो के साथ घर-घर जाकर टैम्परेचर चेक करना,ऑक्सीजन नापने के काम में लगे रहे। एक दिन जब ज्ञानशाला से जुड़े थान सिंह मांडे, चम्पारण ग्राम में किसी बैठक के दौरान गए तो उनकी मुलाकात गोकुल से हुई। बैठक के बाद गोकुल के साथ थान सिंह ने ग्राम में मास्क और हैंड वाश का वितरण किया। वह गोकुल के उत्साह ,समाज सेवी भाव से बहुत ही प्रभावित हुए। थान सिंह जी को बहुत ख़ुशी हुई कि इतनी कम उम्र में इतनी परिपक़्वता लिए यह युवा तो सबसे अलग है।

इसी दौरान जब गोकुल की माँ से उन्हें पता चला कि गोकुल छोटे बच्चो को भी पढ़ाते हैं, तब थान सिंह ने उन्हें ज्ञान शाला से जुड़ने को कहा। गोकुल को बहुत अच्छा लगा ,वह सहर्ष ज्ञानशाला से जुड़ गए। हर शनिवार और रविवार को दोपहर होने वाले प्रशिक्षण का लाभ भी लेने लगे। गोकुल को छोटे बच्चों को पढ़ाने में बहुत आनंद आता है ,उनके अनुसार बच्चो को पढ़ाने के लिए आपको अलग-अलग गतिविधियाँ ,खेल-कूद ,कविता,कहानी के माध्यम से पढ़ाना होता है,जिसमे ज्ञानशाला टीम के सभी शिक्षक अपने प्रशिक्षण में इसका लाभ देते हैं। आज गोकुल दास वैष्णव की उसके ग्राम में एक अलग पहचान बन गई है।

गुणवत्ता शिक्षा, समर्पण, समाज सेवा, जिम्मेदार व्यक्तित्व का जिक्र होने पर चम्पारण गाँव में सबसे पहले गोकुल का नाम आता है। गोकुल कुल 40 बच्चों को प्रति दिन पढ़ाते हैं। बच्चों का प्यार, उनके सीखने की ललक, गोकुल का समर्पण और रचनात्मकता चम्पारण की नयी पीढ़ी को नयी दिशा दे रहे हैं। गोकुल के सामने एक लंबा जीवन है, जिसे वह बड़ा बनाना चाहते हैं।