थानसिंह मांडे का नाम आज किसी परिचय का मोहताज नहीं है, वह तहसील अभनपुर जिला रायपुर छत्तीसगढ़ के निवासी हैं जिन्होंने अपने काबिलियत के दम पर ही बच्चे, बड़े ,बूढ़े और महिला सबके दिल में एक अलग पहचान बना ली है।
परिवार का सहयोग –
जब एक बच्चे का जन्म होता है उसी समय से एक पिता के लिए नई जिम्मेदारी शुरू हो जाती है, बच्चे के उच्चतम भविष्य को सुनहरा बनाने के लिए दिनरात मेहनत मे लग जाता है। थानसिंह मांडे के पिता ने कभी अपनी आर्थिक समस्या को अपने बच्चे के भविष्य में बाधा नहीं बनने दिया। परिवार का जीवन यापन कृषि और मजदूरी से चलता था। थान सिंह मांडे के अनुसार पिता जी ने पढ़ाने का भरपूर प्रयास किया और उन्होंने M. A. की डिग्री इतिहास और राजनीति शास्त्र में प्राप्त की।
शिक्षा से जुड़ाव –
सन 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य, मध्यप्रदेश से अलग हो कर नया राज्य बना। छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी जी थे। उस समय जनभागीदारी शिक्षा की आवश्यकता पड़ी तो थान सिंह मांडे अपने गांव के हाई स्कूल में निशुल्क पढ़ाने के लिए तैयार हो गए। शिक्षा के इस जन अभियान में उन्होंने 3 साल तक गांव – गांव में शिक्षा प्रदान किया। सन 2004 – 05 में वह प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम से से जुड़ गए। गांव की जनसंख्या 2245 थी जिसमें 347 महिला – पुरुष निरक्षर थे। पंचायत की सरपंच दीदी भी निरक्षर महिला थी और मुझे बार बार उनसे हस्ताक्षर करवाना पड़ता था।
गाँव में शिक्षा का अलख जगाया –
जब सरपंच ठीक से हस्ताक्षर नहीं कर पाती तो वह उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करते, लेकिन वह कभी उम्र और कभी अपनी समझ का बहाना बना कर ताल देती थी। फिर थान सिंह ने एक बड़ा निर्णय लिया और सरपंच के घर पर ही लोक शिक्षा केंद्र बना दिया, जिसमें आसपास की प्रौढ़ महिलाएं आ कर पढ़ने लगी। कुछ दिनों में सरपंच भी आकर बैठने लगी उस तरह से धीरे-धीरे वह भी शिक्षा की धारा से जुड़ती चली गई। एक दिन ऐसा हुआ कि वह हस्ताक्षर करना अच्छे से सीख गयीं। थान सिंह ने महिलाओं को पढ़ाने के लिए हंसिया, चूल्हा, लाठी – डंडा जैसे उदाहरणों का सहारा लेकर उन्हें लिखना सिखाया और गांव में शिक्षा का अलख जगाया। उन्हें यह विश्वास हो गया कि शिक्षा वह हथियार है जो प्राप्त करेगा वह संस्कारी होगा, और उसी दिन से वह शिक्षा दान का महत्व समझाते हुए कहते हैं कि जहां चाह होती है वहां राह भी निश्चित होती है।
संघर्ष से अपनी अलग राह बनायी –
सन 2007 में शिक्षाकर्मी पद की वैकेंसी निकली उसमें थान सिंह मांडे ने भी आवेदन किया। नाम तो आया लेकिन कुछ ऊपर नीचे की डिमांड की गयी। सिद्धांत और गरीबी दोनों आड़े आ गए। थान सिंह शिक्षाकर्मी नहीं बन पाए। लेकिन थान सिंह जैसे लोग हारते कहाँ हैं, रुकते कहाँ है, उन्होंने सोच लिया था कि पैसे देकर पद प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं करेंगे और शिक्षा के मार्ग से मुँह भी नहीं मोड़ेंगे। वह कहते हैं कि सच्चाई और तपस्या का मार्ग कठिन तो है, लेकिन शिक्षा एक दान है जो बांटने से बढ़ता है, और शिक्षा दान से बढ़ कर कोई दूसरा आनंद भी नहीं। जब आपके पढ़ाये बच्चे आगे चल कर सफल हो जाए या उन्हें कोई मान्यता मिले तो बंद आँखों से जो अपना इतिहास और चरित्र आप देखते हैं, वह सुख अद्भुत है।
ज्ञानशाला की यात्रा –
2020 में कोरोनावायरस इस कदर बढ़ा कि चारों तरफ सन्नाटा ही सन्नाटा छाया रहा। स्कूल बंद, बच्चों की पढ़ाई पूरी तरह चौपट। बच्चे बेफिक्र हो कर नदी किनारे, बगीचों में, पेड़ों पर, दुर्घटना जन्य स्थानों पर घंटों पड़े रहते। बच्चों की दिनचर्या, गतिविधि, मानसिक स्थिति कुछ अलग ही रास्ते जा रही थी। थान सिगनः से यह देखा न गया। उन्होंने बच्चों के बीच जाकर बच्चों से खुल कर बात की। वह बच्चों की तरह ही व्यवहार करते और बच्चों को खुद से जोड़ने का प्रयास करते। धीरे धीरे बच्चे थान सिंह से जुड़ने लगे, वह अब बच्चों को सुबह सुबह उठकर गाँव में टहलने के लिए दो-तीन किलोमीटर भी ले जाने लगे।
आगे आगे थान सिंह चलते और पीछे पीछे बच्चे। सभी मिल कर एक साथ गीत गाते, मनोरंजन करते और मौका मिलते ही थान सिंह बच्चों को व्यायाम भी कराते। बच्चे हंसी ठहाके के साथ व्यायाम में रुचि लेने लगे। इसी बीच थान सिंह ज्ञानशाला अभियान से जुड़े। बच्चों की संख्या बढ़ने की स्थिति में उन्होंने सरपंच से बात कर एक सामुदायिक भवन में पढ़ाना चालू कर दिया। आज लगभग 9 – 10 महीने में से वह ज्ञानशाला से जुड़कर लगातार स्वयं भी उच्च स्तरीय प्रशिक्षण का लाभ ले रहे हैं और बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं। शुरू में उन्हें लगा कि वह अकेले थे, पर धीरे धीरे कारवां बढ़ता चला गया। आज अभनपुर से अनेकों साथी ज्ञानदूत जुड़ गए हैं और सैंकड़ों बच्चियों को वह सामुदायिक स्तर पर गुणवत्ता शिक्षा दे रहे हैं। थान सिंह कहते हैं “जब गाँव समाज के लोग आगे बढ़ कर बच्चों और विशेष कर बच्चियों को बचपन से गुणवत्ता युक्त शिक्षा देंगे तो हम लोग आसानी से एक बेहतर गाँव, समाज और देश बना पाएंगे”.